Bhag-2 ज़िंदगी, परिवार और स्वास्थ्य का असली सच
कहानी 4: स्टूडेंट की दौड़ अजय 22 साल का कॉलेज स्टूडेंट था। उसका सपना था – बड़ी कंपनी में नौकरी, मोटी सैलरी, और खुद का घर। सुबह से रात तक वह पढ़ाई में डूबा रहता। कभी लाइब्रेरी, कभी कोचिंग, कभी ऑनलाइन क्लास – उसकी पूरी दुनिया किताबें और नोट्स बन चुकी थी। उसके दोस्त पिकनिक पर जाते, क्रिकेट खेलते, या बस पार्क में बातें करते। लेकिन अजय हमेशा कहता – “मुझे अभी टाइम वेस्ट नहीं करना। मुझे टॉप करना है।” एग्ज़ाम आया, अजय ने जी-जान से मेहनत की। और सचमुच – उसने यूनिवर्सिटी टॉप कर लिया। सब लोग ताली बजा रहे थे, घरवाले फूले नहीं समा रहे थे। लेकिन जब सेलिब्रेशन हो रहा था, अजय को अंदर से अजीब सा खालीपन महसूस हुआ। उसने सोचा – “मैंने जीत तो ली, लेकिन इन सालों में मैंने जिंदगी जी ही कब? दोस्तों से बातें नहीं, परिवार के साथ वक्त नहीं, खेल नहीं। बस पढ़ाई और प्रेशर।” धीरे-धीरे उसे समझ आया कि करियर ज़रूरी है, लेकिन जिंदगी सिर्फ़ डिग्री और मार्कशीट नहीं है। सीख (Lesson): 👉 मेहनत करो, पढ़ाई करो, सपने पूरे करो। लेकिन याद रखो – ज़िंदगी सिर्फ़ रिज़ल्ट कार्ड में नहीं, बल्कि उन पलों में भी है जो हम अपनों के साथ बिताते हैं। कहानी 5: बिज़नेसमैन की गलती राजेश एक सफल बिज़नेसमैन था। उसकी कपड़ों की बड़ी कंपनी थी। शहर में उसका नाम, शोहरत और पैसा – सब था। लेकिन राजेश की एक आदत थी – वह दिन-रात सिर्फ़ बिज़नेस के बारे में सोचता। सुबह 6 बजे ऑफिस, रात 12 बजे घर। न खाने का होश, न सोने का टाइम। उसके घर में सब कुछ था – AC, कार, बड़ा फ्लैट। लेकिन घरवाले अक्सर शिकायत करते – “तुम हमारे साथ बैठते ही नहीं। खाना भी फोन कॉल्स पर खाते हो।” राजेश कहता – “अभी मेहनत कर रहा हूँ, रिटायरमेंट के बाद सबके साथ टाइम बिताऊँगा।” लेकिन किस्मत को कुछ और मंज़ूर था। एक दिन मीटिंग के बीच अचानक राजेश को दिल का दौरा पड़ा। डॉक्टर ने कहा – “आपकी सेहत खराब हो चुकी है। अगर अब भी आपने आराम नहीं किया तो जान भी जा सकती है।” राजेश बिस्तर पर लेटा सोच रहा था – “इतना पैसा कमाया, लेकिन सेहत ही नहीं बची। अगर मैं जी नहीं पाऊँ तो ये सब किस काम का?” सीख (Lesson): 👉 पैसा फिर से कमाया जा सकता है, लेकिन सेहत और वक्त दोबारा नहीं आते। 👉 बिज़नेस या नौकरी में मेहनत ज़रूरी है, पर health और family को ignore करना सबसे बड़ी गलती है। कहानी 6: IT Employee का Confession संदीप एक मल्टीनेशनल कंपनी में काम करता था। शानदार सैलरी, विदेश यात्राएँ, बड़ा घर – सब था। लेकिन उसकी ज़िंदगी की हकीकत अलग थी। सुबह 9 बजे से मीटिंग्स शुरू होतीं और देर रात 11 बजे तक चलतीं। वीकेंड पर भी कभी क्लाइंट कॉल्स, कभी डेडलाइन। उसकी पत्नी अक्सर कहती – “संदीप, तुम घर पर होते हुए भी घर पर नहीं होते।” संदीप हँसकर कहता – “बस अभी प्रोजेक्ट खत्म हो जाए, फिर टाइम दूँगा।” लेकिन वो “फिर” कभी नहीं आया। एक दिन उसकी 5 साल की बेटी ने कहा – “पापा, मेरे स्कूल में फैमिली डे था। सबके मम्मी-पापा आए थे, लेकिन आप नहीं आए।” संदीप के दिल पर जैसे चोट लगी। वो सोचने लगा – “मैं पैसा तो कमा रहा हूँ, लेकिन किसके लिए? अगर मेरी बेटी ही खुश नहीं है, तो ये पैसा किस काम का?” उस दिन से उसने तय किया कि अब वर्क-लाइफ़ बैलेंस बनाएगा। ऑफिस का काम दफ़्तर तक, घर का वक्त परिवार तक। सीख (Lesson): 👉 कॉर्पोरेट लाइफ़ में पैसा और ग्रोथ मिलती है, लेकिन परिवार के साथ बिताया वक्त ही असली दौलत है। 👉 अगर बच्चा कहे “आप मेरे साथ नहीं हैं,” तो लाखों की सैलरी भी बेकार है।
raj 2
9/11/20251 min read
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